Posts

विश्व डूब रोकथाम दिवस (World Drowning Prevention Day) भी 25 July को मनाया जाता है.

  विश्व डूब रोकथाम दिवस (World Drowning Prevention Day) हर साल 25 जुलाई को मनाया जाता है। यह दिन यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली की प्रस्तावना के तहत 2021 में स्थापित किया गया था ताकि वैश्विक स्तर पर डूबने से होने वाली मृत्यु और दुर्घटनाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके। डूबना विश्व में आकस्मिक चोटों और मौतों का तीसरा प्रमुख कारण है, खासकर 1 से 14 वर्ष के बच्चों और युवाओं में। अधिकांश मौतें ग्रामीण और निम्न-आय वाले देशों में होती हैं, जहां जल सुरक्षा कम होती है। इस दिन का उद्देश्य डूबने की रोकथाम के लिए सस्ती और प्रभावी उपायों को बढ़ावा देना, सरकारों, संगठनों और समुदायों को सक्रिय करना, और लोगों को जल सुरक्षा, बचाव और पुनः जीवन-दान की तकनीकों से अवगत कराना है। जैसे कि खुले पानी के स्रोतों तक पहुंच को नियंत्रित करना, बच्चों को तैराकी और जल सुरक्षा सिखाना, सुरक्षित नौकायन नियम लागू करना और त्वरित बचाव सहायता देना। विश्व डूब रोकथाम दिवस डूबने से होने वाली अनावश्यक मौतों को कम करने के लिए वैश्विक मंच प्रदान करता है, जिससे जीवन की रक्षा हो सके और खासकर उन जगहों पर जहां डूबने का खतरा अधिक है...

1929: सोमनाथ चटर्जी, राजनीतिज्ञ और प्रमुख वकील (भारत).

  सोमनाथ चटर्जी: राजनीतिज्ञ और प्रमुख वकील (1929-2018) सोमनाथ चटर्जी का जन्म 25 जुलाई 1929 को असम के तेजपुर में हुआ था। वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के प्रमुख नेताओं में से एक थे और लंबे समय तक भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे। उनकी शिक्षा भली-भांति हुई थी; उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज और इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के जीसस कॉलेज से स्नातकोत्तर किया और यूके के मिडिल टेम्पल से बैरिस्टर-एट-लॉ की उपाधि प्राप्त की। उनका वकालती कैरियर भी प्रभावशाली था। राजनीतिक जीवन और योगदान: सोमनाथ चटर्जी ने 1968 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) में शामिल होकर राजनीतिक जीवन शुरू किया। वे लोकसभा सांसद थे, जिनका पहला चुनाव 1971 में विजय रहा और वे दस बार सांसद चुने गए। 1989 से 2004 तक वे लोकसभा में सीपीआई(एम) के नेता रहे। 4 जून 2004 से 16 मई 2009 तक वे चौदहवीं लोकसभा के अध्यक्ष रहे, जो एक सम्मानित संवैधानिक पद है। उन्हें इस पद पर निर्विरोध चुना गया था और उन्होंने संसद की कार्यवाही को निष्पक्ष और गरिमा के साथ संचालित किया। अध्यक्ष के रूप में उन्होंने संसदीय लोकतंत्र की...

1875: जिम कॉर्बेट, प्रकृति प्रेमी और लेखक (भारत).

  जिम कॉर्बेट: प्रकृति प्रेमी, लेखक और वन्यजीवन के संरक्षक जिम कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875 को ब्रिटिश भारत के नैनीताल (वर्तमान उत्तराखंड) में हुआ था। वे एक प्रसिद्ध शिकारी, प्रकृति प्रेमी, लेखक, और वन्यजीवन संरक्षण के अग्रदूत थे। कॉर्बेट को मुख्यतः भारत में आदमखोर बाघों और शेरों का शिकार करने के लिए जाना जाता है, जिन्होंने स्थानीय लोगों को इस भयावह समस्या से मुक्ति दिलाई। प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि: जिम कॉर्बेट का पूरा नाम एडविन रैंथम कॉर्बेट था। उन्होंने युवावस्था में ही शिकारी के रूप में अपनी पहचान बनाई। नैनीताल की पहाड़ियों में वे पेड़-पक्षियों और जीव-जंतुओं के प्रति गहरा लगाव रखते थे। शिकारी से संरक्षक तक का सफर: कॉर्बेट ने कई खतरनाक आदमखोर बाघों और शेरों का सफलतापूर्वक शिकार कर स्थानीय लोगों की जान बचाई। खासकर रामनगर क्षेत्र में उनका नाम काफी प्रसिद्ध हुआ। हालांकि, बाद में वे वन्यजीवन संरक्षण की दिशा में अग्रसर हुए और जंगलों तथा जंगली जीवन के संरक्षक बन गए। उन्होंने वन्यजीवों और उनके आवास के महत्व को समझा और संरक्षण के लिए सक्रिय प्रयास किए। वन्यजीवन संरक्षण और योगदान: जिम ...

1978: इंग्लैंड के ओल्डहैम में दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लुईस ब्राउन का जन्म हुआ.

  लुईस ब्राउन: दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी (25 जुलाई 1978) 25 जुलाई 1978 को इंग्लैंड के ओल्डहैम में लुईस जॉय ब्राउन का जन्म हुआ, जिन्हें दुनिया की पहली सफल टेस्ट ट्यूब बेबी माना जाता है। उनका जन्म इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) तकनीक का एक महत्वपूर्ण चिकित्सीय सफल प्रयास था, जिससे चिकित्सकीय विज्ञान में एक नया युग प्रारंभ हुआ। पृष्ठभूमि: लुईस की मां, लेस्ली ब्राउन, पिछले 9 वर्षों से संतानहीन थीं। उन्हें फैलोपियन ट्यूब में समस्या थी, जिसके कारण प्राकृतिक गर्भधारण संभव नहीं था। उस समय महामारी के रूप में बांझपनास्य समस्याओं का कोई प्रभावी इलाज नहीं था। IVF प्रक्रिया: इस तकनीक में महिला के अंडाणु को उसकी गर्भाशय से निकालकर लैब में पुरुष के शुक्राणु के साथ निषेचित किया जाता है। इस निषेचन के बाद भ्रूण को महिला के गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है ताकि गर्भावस्था हो सके। इस प्रक्रिया के लिए इंग्लैंड के वैज्ञानिक डॉक्टर रॉबर्ट एडवर्ड्स और डॉ. पैट्रिक स्टेप्टो ने काम किया। 1977 में नवंबर में उन्होंने लेस्ली ब्राउन के अंडाणु को लैब में निषेचित किया और सफल भ्रूण को गर्भाशय में प्रत्यारोपित...