भारत और बांग्लादेश के बीच तिस्ता नदी जल बंटवारा समझौते का विस्तृत विवरण
तिस्ता नदी का महत्व
तिस्ता नदी हिमालय क्षेत्र से निकलती है और भारत के सिक्किम व पश्चिम बंगाल से होकर बांग्लादेश में प्रवेश करती है। यह नदी दोनों देशों की कृषि, मत्स्यपालन, जल संरक्षण और जीवनोपयोगी स्रोतों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। तिस्ता नदी के जल संसाधनों का न्यायसंगत बंटवारा दोनों देशों के लिए विकास और आर्थिक स्थिरता का विषय है।
समझौते का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
1983 का प्रारंभिक समझौता:
भारत और बांग्लादेश के बीच पहली बार 1983 में तिस्ता नदी के जल बंटवारे के लिए अस्थायी समझौता हुआ। इसमें भारत को लगभग 39% और बांग्लादेश को 36% जल दिया जाना तय हुआ था। हालांकि शेष 25% जल का बँटवारा तय नहीं हो सका।2011 का प्रयास:
दोनों देशों ने 2011 में एक व्यापक और अंतिम समझौते की कोशिश की जिसमें बांग्लादेश को तिस्ता के जल का लगभग 37.5% और भारत को 42.5% हिस्सा देने का प्रस्ताव था।
परंतु, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का इस समझौते के खिलाफ विरोध प्रमुख कारण बना, क्योंकि उनका मानना था कि इससे पश्चिम बंगाल के किसानों को नुकसान होगा।
विवाद और असहमति के कारण
पश्चिम बंगाल सरकार का जल बंटवारे के प्रस्तावित हिस्से को लेकर विरोध।
तिस्ता नदी के जल स्तर में मौसमी बदलाव और वर्षा के आधार पर उपलब्ध जल की असमर्थिता।
दोनों देशों की जल सुरक्षा, कृषि एवं पयर्टन जरूरतों को संतुलित करने की चुनौती।
राजनीतिक एवं राजनयिक कारणों से मामला अभी भी अधर में है।
हाल के प्रयास और भविष्य की संभावनाएँ
दोनों देशों के अधिकारियों के बीच तकनीकी स्तर पर कई दौर के वार्ता जारी हैं।
जल संसाधन विशेषज्ञ और पर्यावरणविद भी सहयोग कर रहे हैं ताकि सही और न्यायसंगत बंटवारा सुनिश्चित किया जा सके।
जलसंधि को अंतिम रूप देने हेतु संवेदनशीलता और सतत प्रयास किए जा रहे हैं, जो दोनों देशों के हित में हो।
सारांश
विषय | विवरण |
---|---|
नदी का स्रोत एवं स्थान | हिमालय से निकलकर भारत और बांग्लादेश से होकर बहती है |
1983 का समझौता | अस्थायी, भारत-39%, बांग्लादेश-36%, बाकी 25% विवादित |
2011 का प्रस्ताव | दोनों पक्षों के बीच हिस्सों का प्रस्ताव किन्तु विरोधी कारणों से फेल |
विवाद के मुख्य कारण | पश्चिम बंगाल की जल चिंता, उपलब्ध जल की मौसमी कमी |
वर्तमान स्थिति | वार्ता जारी, अंतिम समझौता लंबित |
निष्कर्ष:
तिस्ता नदी का जल बंटवारा भारत-बांग्लादेश संबंधों की एक अहम कड़ी है। जल संसाधनों का न्यायसंगत वितरण दोनों देशों के लिए आपसी सम्मान और सहयोग का प्रतीक होगा। इससे क्षेत्रीय विकास, कृषिकर्म और पर्यावरण संरक्षण में सुधार आएगा। विवादों को सुलझाकर स्थायी समाधान निकालना अत्यंत आवश्यक है, ताकि दोनों देश मित्रता के साथ भविष्य में विकास कर सकें।
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