भारत के राष्ट्रीय ध्वज को 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा द्वारा इसके वर्तमान स्वरूप में औपचारिक रूप से अपनाया गया था। यह भारत की स्वतंत्रता से कुछ ही दिन पहले, एक ऐतिहासिक क्षण था। इस घटना का विस्तृत विवरण नीचे दिया गया है।
पृष्ठभूमि: एक ध्वज की आवश्यकता
जैसे-जैसे भारत की स्वतंत्रता निकट आ रही थी, एक ऐसे राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता महसूस की गई जो देश की संप्रभुता, गौरव और आकांक्षाओं का प्रतीक हो। हालाँकि, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तिरंगे के कई संस्करणों का उपयोग किया जा चुका था, लेकिन स्वतंत्र भारत के लिए एक अंतिम और आधिकारिक डिजाइन तय करना आवश्यक था।
इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए, संविधान सभा ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक तदर्थ समिति (Ad Hoc Committee) का गठन किया। इस समिति में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सरोजिनी नायडू, सी. राजगोपालाचारी, के. एम. मुंशी और डॉ. बी. आर. अंबेडकर जैसे प्रमुख सदस्य शामिल थे। समिति का काम एक ऐसे ध्वज पर निर्णय लेना था जो सभी समुदायों को स्वीकार्य हो और भारत के समृद्ध इतिहास और भविष्य की दृष्टि को दर्शाता हो।
ऐतिहासिक सत्र: 22 जुलाई 1947
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा की बैठक में, भारत के पहले प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय ध्वज को अपनाने का प्रस्ताव पेश किया। उन्होंने एक यादगार भाषण दिया जिसमें उन्होंने ध्वज के डिजाइन और उसके पीछे के दर्शन को समझाया।
नेहरू ने कहा:
"यह प्रस्ताव केवल एक ध्वज को अपनाने के बारे में नहीं है, बल्कि यह स्वतंत्रता के प्रतीक को अपनाने का संकल्प है, एक ऐसे राष्ट्र के प्रतीक को जो सदियों की गुलामी के बाद आज़ाद होने जा रहा है।"
उन्होंने ध्वज के रंगों और चक्र के अर्थ को स्पष्ट किया। सदन में मौजूद सभी सदस्यों ने खड़े होकर और करतल ध्वनि के साथ इस प्रस्ताव का समर्थन किया, और इसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। यह एक अत्यंत भावुक और ऐतिहासिक क्षण था जिसने स्वतंत्र भारत की नींव रखी।
तिरंगे का स्वरूप और उसका प्रतीकवाद
अपनाए गए ध्वज का डिज़ाइन पिंगली वेंकय्या द्वारा बनाए गए स्वराज ध्वज पर आधारित था, जिसमें कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए थे।
केसरिया (सबसे ऊपर): यह रंग साहस, शौर्य और बलिदान का प्रतीक है। यह देश के नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों के निस्वार्थ बलिदान की याद दिलाता है।
सफ़ेद (बीच में): यह रंग शांति, सच्चाई और पवित्रता को दर्शाता है। यह राष्ट्र को सत्य और शांति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
हरा (सबसे नीचे): यह रंग विश्वास, उर्वरता, समृद्धि और भूमि की हरियाली का प्रतीक है। यह भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक समृद्धि को दर्शाता है।
अशोक चक्र (केंद्र में): सफेद पट्टी के केंद्र में गहरे नीले रंग का चक्र है, जिसमें 24 तीलियाँ हैं। इसे सारनाथ में स्थित अशोक स्तंभ से लिया गया है। यह 'धर्म चक्र' का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि गति में जीवन है और ठहराव में मृत्यु। यह राष्ट्र की निरंतर प्रगति और न्याय के शासन का प्रतिनिधित्व करता है। इसने पहले के संस्करणों में मौजूद चरखे की जगह ली, ताकि ध्वज को एक सार्वभौमिक और ऐतिहासिक पहचान मिल सके।
इस प्रकार, 22 जुलाई 1947 को अपनाया गया तिरंगा सिर्फ़ कपड़े का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों के लिए स्वतंत्रता, एकता और गर्व का एक जीवंत प्रतीक बन गया।
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