मुगल सम्राट हुमायूं ने सरहिंद में सिकंदर सूरी को हराकर पुनः दिल्ली पर कब्ज़ा किया

 मुगल सम्राट हुमायूं ने सरहिंद में सिकंदर सूरी को हराकर पुनः दिल्ली पर कब्ज़ा किया – विस्तृत विवरण

हुमायूं, बाबर के पुत्र और दूसरे मुग़ल सम्राट, को अपने शासनकाल में अनेक उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ा। 1540 ई. में शेर शाह सूरी के हाथों बिलग्राम (कन्नौज) की लड़ाई में पराजय के बाद हुमायूं भारत से निर्वासित हो गया था। अगले 15 वर्षों तक वह फारस (ईरान) में शरणार्थी के रूप में रहा और बाद में शाही सहायता प्राप्त कर एक बार फिर भारत पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से लौटा।

पृष्ठभूमि:

शेर शाह सूरी की मृत्यु (1545 ई.) के बाद सूर वंश में अंदरूनी संघर्ष शुरू हो गए। उसका उत्तराधिकारी इस्लाम शाह कुछ समय तक शासन कर सका, लेकिन उसकी मृत्यु के बाद सूर वंश कई गुटों में बंट गया। इस सत्ता संघर्ष में सिकंदर शाह सूरी और आदिल शाह सूरी जैसे कई सूर शासक उभरकर सामने आए। यह स्थिति हुमायूं के लिए अवसर बन गई।

हुमायूं की वापसी:

1555 ई. में हुमायूं ने फारस की मदद से काबुल और कंधार पर पुनः अधिकार कर लिया। इसके बाद उसने पंजाब की ओर कूच किया। इस समय सूर वंश का प्रमुख प्रतिद्वंदी सिकंदर शाह सूरी था, जिसने पंजाब के महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अधिकार जमा रखा था।

सरहिंद की लड़ाई:

1555 ई. में सरहिंद (वर्तमान पंजाब, भारत) में एक निर्णायक युद्ध लड़ा गया, जिसमें हुमायूं की सेना ने सिकंदर शाह सूरी को बुरी तरह पराजित किया। इस युद्ध में हुमायूं की सेनाओं का नेतृत्व बैरम ख़ाँ ने किया, जो उसका विश्वस्त और कुशल सेनापति था। सिकंदर शाह इस हार के बाद भाग खड़ा हुआ।

दिल्ली पर पुनः अधिकार:

सरहिंद की जीत के बाद हुमायूं ने जुलाई 1555 ई. में दिल्ली और आगरा पर पुनः कब्ज़ा कर लिया। लगभग 15 वर्षों के बाद एक बार फिर मुग़ल साम्राज्य की राजधानी में मुग़ल ध्वज लहराया गया। इस तरह भारत में मुग़ल शासन का दूसरा चरण शुरू हुआ।

ऐतिहासिक महत्त्व:

  • यह जीत केवल एक सैन्य विजय नहीं थी, बल्कि यह मुग़ल साम्राज्य की पुनर्स्थापना का प्रतीक थी।

  • हालांकि हुमायूं का पुनः शासन काल बहुत लंबा नहीं रहा। जनवरी 1556 में पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।

  • इसके बाद उसका पुत्र अकबर सम्राट बना, जिसने मुग़ल साम्राज्य को चरम पर पहुँचाया।


निष्कर्ष:
हुमायूं की सरहिंद में सिकंदर सूरी पर विजय और दिल्ली पर पुनः कब्जा इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने न केवल मुग़ल साम्राज्य की वापसी सुनिश्चित की बल्कि भारत के राजनीतिक भविष्य की दिशा भी तय की।

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