1992: एस.डी. शर्मा भारत के नौवें राष्ट्रपति बने.

 एस. डी. शर्मा: भारत के नौवें राष्ट्रपति (1992-1997)

डॉ. शंकर दयाल शर्मा, जिन्हें आमतौर पर एस. डी. शर्मा के नाम से जाना जाता है, 25 जुलाई 1992 को भारत के नौवें राष्ट्रपति बने। उनका यह कार्यकाल 25 जुलाई 1992 से 25 जुलाई 1997 तक रहा। वे भारतीय राजनीति के अत्यंत सम्मानित और अनुभवी नेता थे, जिन्होंने अपनी लंबी राजनीतिक यात्रा में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

एस. डी. शर्मा का जन्म 19 अगस्त 1918 को मध्य प्रदेश के भोपाल में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की और वकालत में एम.ए. और एलएल.बी. की डिग्री हासिल की। वे एक प्रभावशाली वक्ता और साहित्य प्रेमी भी थे।

राजनीतिक कैरियर:

  • शर्मा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

  • वे भारत के आठवें उपराष्ट्रपति थे (1987-1992)।

  • कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ सदस्य और मंत्री के रूप में उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  • उनकी राजनीतिक समझ और संवेदनशीलता ने उन्हें एक लोकप्रिय नेता बनाया।

राष्ट्रपति पद की विशेषताएं:

  • 25 जुलाई 1992 को उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली।

  • उनका कार्यकाल भारत के राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों के दौर में रहा।

  • उन्होंने सख्त संवैधानिक सीमाओं के बीच देश की एकता और लोकतंत्र को मजबूती दी।

  • कई प्रधानमंत्रियों को उन्होंने शपथ दिलाई, जिनमें पी. वी. नरसिम्हा राव और एच. डी. देवेगौड़ा शामिल हैं।

  • उनका व्यक्तित्व सरल, विनम्र और संवेदनशील था, जो उन्हें जनता के बीच प्रिय बनाता था।

महत्वपूर्ण योगदान:

  • उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में संवैधानिक जिम्मेदारियों का निर्वाह बखूबी किया।

  • उन पर विशेष तौर पर आपातकाल एवं राजनीतिक अस्थिरता के बाद लोकतंत्र की स्थिरता बनाए रखने की जिम्मेदारी थी।

  • शर्मा ने शिक्षा, साहित्य और सांस्कृतिक क्षेत्र में भी योगदान दिया।

निधन:

डॉ. शंकर दयाल शर्मा का निधन 26 दिसंबर 1999 को हुआ। वे भारतीय राजनीति के आदरणीय नेता के रूप में याद किए जाते हैं।

निष्कर्ष:

एस.डी. शर्मा का राष्ट्रपति कार्यकाल देश में संवैधानिक शासन और लोकतंत्र की मजबूती के लिए महत्वपूर्ण था। उनकी विनम्रता, अनुभव और समर्पण ने उन्हें एक आदर्श राष्ट्रपति बनाया, जिनकी देशवासियों के बीच गहरी छवि रही। उन्होंने भारत के लोकतंत्र को एक स्थिर मंच प्रदान किया और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा की।

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