बांग्ला साहित्यकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता ताराशंकर बंदोपाध्याय का जन्म
बांग्ला साहित्यकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता ताराशंकर बंदोपाध्याय का जन्म – विस्तृत विवरण
🔹 परिचय:
ताराशंकर बंदोपाध्याय (Tarashankar Bandyopadhyay) का जन्म 23 जुलाई 1898 को पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले के लाबपुर गांव में हुआ था। वे 20वीं सदी के प्रमुख बांग्ला उपन्यासकार, कहानीकार और एक महान सांस्कृतिक चिंतक थे, जिन्होंने ग्रामीण बंगाल के जीवन, समाज, संघर्ष और सांस्कृतिक जटिलताओं को अत्यंत संवेदनशीलता से चित्रित किया।
📚 साहित्यिक योगदान:
ताराशंकर ने 100 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें उपन्यास, लघुकथाएं, नाटक और संस्मरण शामिल हैं। उनका लेखन बंगाली समाज की गहराइयों में जाकर गरीब, ग्रामीण, दलित और हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज़ बनता है।
उनके प्रमुख उपन्यासों में शामिल हैं:
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गणदेवता (Gandhivata) – यह उपन्यास उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार (1966) दिलाने वाला साहित्यिक कृति है।
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हांसुलीबांकेर उपकथा
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धात्रीदेवीर कथा
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पंचग्रामी
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आरोग्य निकेतन – इस पर फिल्म भी बनी थी।
उनकी रचनाओं में ग्रामीण संस्कृति, जातीय संघर्ष, धार्मिक प्रभाव, सामाजिक बदलाव और राजनीतिक उथल-पुथल की स्पष्ट झलक मिलती है।
🏅 सम्मान और पुरस्कार:
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ज्ञानपीठ पुरस्कार (1966) – उपन्यास गणदेवता के लिए
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साहित्य अकादमी पुरस्कार
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पद्मश्री (1962)
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पद्मभूषण (1969)
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उन्हें राज्यसभा सदस्य के रूप में भी नामित किया गया था।
🎬 फिल्मों में योगदान:
उनकी कई कृतियों पर आधारित बांग्ला फिल्में बनीं, जिनमें से कई को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले।
उदाहरण:
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आरोग्य निकेतन
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हांसुलीबांकेर उपकथा
🕊️ निधन:
ताराशंकर बंदोपाध्याय का निधन 14 सितंबर 1971 को हुआ। लेकिन उनका साहित्यिक योगदान आज भी बांग्ला साहित्य और भारतीय लेखन की आत्मा में जीवित है।
✍️ निष्कर्ष:
ताराशंकर बंदोपाध्याय एक ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने किसान, श्रमिक, दलित और आम जनजीवन को बांग्ला साहित्य की मुख्यधारा में लाकर खड़ा किया। उनकी लेखनी में लोकजीवन की सच्चाई, पीड़ा और सौंदर्य झलकता है। वे आज भी भारतीय यथार्थवादी साहित्य के एक स्तंभ माने जाते हैं।
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